यज्ञोपवीत संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह एक ऐसा संस्कार है जो 16 संस्कारों में से एक है और इसे आमतौर पर किशोरावस्था में प्रवेश करने से पहले किया जाता है. इसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है.
यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व:
अनुशासन:
यह संस्कार बच्चों में अनुशासन पैदा करता है.
नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा:
सनातन धर्म के अनुसार, यज्ञोपवीत नकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों से रक्षा का एक कवच है.
तीन ऋणों का स्मरण:
यज्ञोपवीत में तीन धागे होते हैं जो तीन ऋणों, ऋषि ऋण, देव ऋण, और पितृ ऋण, का प्रतीक हैं.
ब्रह्मचर्य का प्रतीक:
यज्ञोपवीत धारण करने से व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने का संकल्प लेता है.
ज्ञान और नैतिक मूल्यों का प्रतीक:
यज्ञोपवीत धारण करने से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त करने और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने की शक्ति मिलती है.
यज्ञोपवीत संस्कार कैसे किया जाता है?
1. मुंडन:
यज्ञोपवीत संस्कार से पहले, होने वाले बालक का मुंडन किया जाता है.
2. स्नान और चंदन-केसर का लेप:
संस्कार के दिन, उसे स्नान कराया जाता है और उसके सिर और शरीर पर चंदन और केसर का लेप लगाया जाता है.
3. यज्ञोपवीत धारण:
उसे जनेऊ पहनाकर ब्रह्मचारी बनाया जाता है.
4. हवन:
इसके बाद, विधिपूर्वक हवन किया जाता है.
5. गणेश पूजन:
गणेश आदि देवताओं का पूजन किया जाता है.
6. गायत्री मंत्र का जाप:
10 बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके देवताओं का आह्वान किया जाता है.
7. शास्त्र शिक्षा और व्रतों का वचन:
बालक से शास्त्र शिक्षा और व्रतों का पालन करने का वचन लिया जाता है.
8. गुरु मंत्र:
गुरु मंत्र सुनाकर उसे ब्रह्मचारी घोषित किया जाता है.
9. मेखला और दंड:
मृगचर्म ओढ़ाकर, मुंज (मेखला) का कंदोरा बांधा जाता है और एक दंड हाथ में दिया जाता है.
10. भिक्षा:
इसके बाद, बालक उपस्थित लोगों से भिक्षा मांगता है.
यज्ञोपवीत (जनेऊ) के बारे में कुछ और बातें:
निष्कर्ष: यज्ञोपवीत संस्कार हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण संस्कार है जो ज्ञान, नैतिकता, अनुशासन और आध्यात्मिक विकास से जुड़ा है.